"चेतावनी: यह रहस्य कहानी केवल परिपक्व पाठकों के लिए है। इसमें ऐसे तत्व शामिल हो सकते हैं जो संवेदनशील पाठकों के लिए उपयुक्त न हों, जैसे कि रहस्यमयी घटनाएँ, मानसिक तनाव, या वयस्क विषयवस्तु। कृपया अपने विवेक और बुद्धि का प्रयोग करें और अपनी सुविधा के अनुसार इस कहानी का आनंद लें।"
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हिमाचल की वादियों में बसा एक पुराना ब्रिटिश-कालीन रिसॉर्ट — ‘ग्लेन व्यू’।
विक्रम, सिम्मी और उनके दो बच्चे — आरुष और तान्या — शहर की भीड़ से दूर छुट्टियाँ बिताने यहाँ पहुँचे। रिसॉर्ट शांत था, मौसम सुहावना, और चारों तरफ हरियाली फैली थी।
रामदीन नामक एक बुज़ुर्ग कर्मचारी ने उनका स्वागत किया।
"कमरा नंबर पाँच तैयार है, साहब।"
"बाकी कमरे?" सिम्मी ने पूछा।
"सब बंद हैं, मैडम... रख-रखाव चल रहा है।"
कमरा सुंदर था — लकड़ी की छत, पुराने झूमर, और खिड़की से दिखती बर्फीली चोटियाँ। रिसॉर्ट की बनावट U-शेप थी, और कोने पर एक पुराना दरवाज़ा दिखता था... छठा कमरा, जिसके सामने हमेशा एक लाल बल्ब जलता रहता था।
पहली रात
सब थककर सो गए। तान्या खिड़की के पास बैठी खिलौनों से खेल रही थी। तभी उसे लगा जैसे सामने वाली दीवार के कोने से कोई देख रहा है।
वो माँ के पास गई — "मम्मी, उस आंटी को देखा?"
"कौन आंटी?"
"जो बाहर खड़ी थी। उसने कहा — 'खेलने आओ।'"
"तान्या, यहाँ कोई नहीं है। सपना देखा होगा।"
सिम्मी मुस्कराई, लेकिन उस मुस्कान में हल्की सी झिझक थी।
अगले दिन
सिम्मी जब सामान रख रही थी, उसे नोटिस हुआ कि तान्या का छोटा रेनकोट गायब है। उसे याद था — वो रैक पर रखा था। बाद में वो रेनकोट उसे लॉबी के एक कोने में पड़ा मिला, जो पूरी तरह गीला था... जबकि बाहर बारिश नहीं हुई थी।
टीवी कभी-कभी अपने आप ऑन हो जाता, और स्क्रीन पर बस सफेद झिलमिलाहट दिखती थी।
विक्रम ने हँसकर कहा, "पुराना सिस्टम है, होगा कुछ सिग्नल का मसला।"
पर सिम्मी की हँसी अब बनावटी थी। उसे लगता — कोई उनकी हर हरकत देख रहा है।
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तीसरी रात
तान्या फिर जागी। खिड़की के पास गई... और धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर बढ़ी।
"मम्मी ने मना किया था..."
एक फुसफुसाहट — "वो नहीं समझेगी... लेकिन तू समझेगी ना?"
उसके हाथ खुद-ब-खुद दरवाज़ा खोलने लगे। वो लॉबी की ओर चली। कोने पर हल्की रोशनी थी — छठे कमरे का दरवाज़ा खुला था... पहली बार।
वो अंदर चली गई। दरवाज़ा धीरे से बंद हो गया।
उधर, सिम्मी को अचानक नींद से झटका लगा। उसे लगा जैसे कुछ छूट गया हो। उसने तान्या को बिस्तर पर नहीं पाया।
"विक्रम! तान्या नहीं है!"
रात के दो बज रहे थे। हवाओं में सिहरन सी थी। सिम्मी और विक्रम रिसॉर्ट के हर कोने में तान्या को ढूंढ़ रहे थे।
"वो कहीं छिप गई होगी... शायद गेम खेल रही हो..."
विक्रम ने खुद को दिलासा दिया, पर उसकी आवाज़ कांप रही थी।
सिम्मी की नज़र लॉबी की उस ओर गई, जहाँ लाल बल्ब की मद्धम रोशनी छठे कमरे पर पड़ रही थी।
कमरा बंद था। लेकिन जैसे ही उसने उसके पास से गुज़रना चाहा — हवा का एक झोंका दरवाज़े को धीरे से खोल गया।
दरवाज़े के पीछे अंधेरा था।
भीतर से सर्द हवा निकली... और जैसे ही सिम्मी ने कदम बढ़ाया —
दरवाज़ा फिर बंद हो गया।
सिम्मी हड़बड़ाई। "विक्रम! शायद वो अंदर है!"
विक्रम ने खटखटाया, पर कोई जवाब नहीं। रामदीन को बुलाया गया।
वो एकदम सफेद पड़ गया — "माफ करना, साहब। वो कमरा... बंद ही रहना चाहिए।"
"पर हमारी बेटी—"
"जो उस कमरे में गया... कभी वैसा नहीं लौटा।"
पर सिम्मी नहीं रुकी। उसने खुद एक दीवार पर लटकी पुरानी चाबी निकाली, और दरवाज़ा खोला।
अंदर... सन्नाटा।
कमरा पुराना था, फर्श पर पुरानी लकड़ी की आवाज़ें, एक टूटा झूला, दीवारों पर पीलापन और सीलन की खुशबू।
पर वहाँ एक अजीब सी चुप्पी थी — जैसे कमरा सांस ले रहा हो।
एक कोने में पड़ा था — तान्या का टेडी बियर।
"तान्या?" सिम्मी ने आवाज़ दी।
कोई जवाब नहीं।
तभी दीवार पर लगे शीशे में सिम्मी ने देखा — पीछे एक छाया थी।
उसकी आकृति इंसानी थी, पर चेहरा... चेहरा धुंध था।
वो मुड़ी — वहाँ कोई नहीं था।
अचानक दीवार पर लटकी घड़ी की सूई गोल-गोल घूमने लगी।
सिम्मी का सिर चकराया, सांसें तेज़ हुईं।
तभी कमरे के कोने से धीमी सी आवाज़ आई —
"वो अब मेरी है..."
सिम्मी ने पलटकर देखा — एक परछाईं दीवार से अलग होकर ज़मीन पर रेंग रही थी... सीधी उसकी ओर।
विक्रम ने झट से सिम्मी को खींचा, और दोनों दरवाज़ा बंद कर बाहर भागे।
कमरा फिर से शांत हो गया — जैसे कुछ हुआ ही न हो।
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अगली सुबह
तान्या अपने बिस्तर पर थी। आँखें खुली थीं, मगर होश में नहीं।
उसकी हथेली पर कुछ उभरा था — एक अधूरी आकृति, जैसे कुछ जल गया हो।
वो बोल नहीं रही थी, बस एक ही दिशा में देखे जा रही थी — उस कमरे की ओर।