Rahasya katha: खंडहर घर और खजाना – एक सच्ची रोमांचक खोज

रविवार, 15 जून 2025

खंडहर घर और खजाना – एक सच्ची रोमांचक खोज

  

"खंडहर घर में खजाना खोजता बच्चा – मिट्टी की दीवारों और पुराने माहौल में रोमांच का दृश्य"
एक उजाड़ खंडहर, एक बच्चा, और एक रहस्यमयी खजाना…

  हर किसी के बचपन में कुछ ऐसी घटनाएँ होती हैं जो समय के साथ धुंधली नहीं होतीं, बल्कि और भी गहरी होती जाती हैं। गर्मियों की एक ऐसी ही छुट्टी में, जब मैं अपने नानाजी-नानी के गाँव गया था, तब मेरे साथ कुछ ऐसा घटा जिसे मैं आज तक नहीं भूल पाया। यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक ऐसा अनुभव था जिसने मेरे बचपन की सोच को एक अलग दिशा दी।

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गाँव छोटा था, पर बहुत ही सुंदर। खेत, कुएँ, आम के पेड़, और वो मिट्टी की सोंधी खुशबू — सब कुछ बहुत अलग और आत्मीय लगता था। नानाजी का घर भी वैसा ही था, पुराना पर मजबूत। आँगन में एक बड़ा-सा पेड़ था, जिसकी छाँव में नानाजी अक्सर खटिया डालकर बैठा करते थे। मैं वहीं खेलता-कूदता रहता।

     एक दिन, खेलते-खेलते मैं नानाजी के घर से थोड़ी दूर एक पुरानी मिट्टी की हवेली में पहुँच गया। गाँव के लोग कहते थे कि वो घर बरसों से खाली पड़ा है। उसके मालिक कब के शहर चले गए थे। ऊपर से वो बस एक सामान्य सा पुराना घर था, लेकिन अंदर जाकर ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी समय में वहाँ बहुत रौनक रही होगी।

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मै पूरे घर में घूमने लगा। कमरे मिट्टी के, दीवारें थोड़ी झुकी हुई और धूल से ढँकी थीं। एक कमरे में एक पुरानी लकड़ी की अलमारी थी, जो अब जर्जर हो चुकी थी। मैं उसकी ओर बढ़ा, तभी मेरी नज़र ज़मीन पर गई। कुछ चमक रहा था। झुककर देखा — वो एक अजीब सा सिक्का था। पीला, भारी और देखने में सोने जैसा।

मैंने वह सिक्का उठाया और चुपचाप अपनी जेब में रख लिया। घर लौटकर देर तक उसे देखता रहा। वो चमकता था, जैसे उसमें कोई रहस्य छुपा हो।

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 मैअगले दिन फिर से उसी घर में गया। इस बार तो जैसे कोई मुझे खींचकर वहाँ ले जा रहा था। और वहाँ पहुँचकर फिर वही हुआ — ज़मीन पर धूल में एक और वैसा ही सिक्का मिला। अब मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई थी। क्या ये संयोग था? या कुछ और?

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तीसरे दिन जब मैं वहाँ पहुँचा, तो घर की एक दीवार पर मेरी नज़र पड़ी। वो दीवार बाकी सब से ज़्यादा कमजोर लग रही थी, जैसे गिरने को हो। तभी मुझे दीवार में से कुछ झाँकता हुआ दिखा — कुछ गोल, मिट्टी में दबा हुआ।

मैं उत्सुकता में दीवार कुरेदने लगा। थोड़ी मेहनत के बाद एक घड़ा बाहर आया। उसका मुँह बंद था, लेकिन वजन से महसूस हुआ कि उसमें कुछ है। मैंने जैसे-तैसे उसे बाहर निकाला और खुशी तुम उठा.. उसके अंदर ढेरे सारे सिक्के वैसेही जैसे मुझे मिले। मैं दौड़ते हुए  नानाजी के पास गया और उन्हें वहां ले आया।

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    नानाजी जब मेरे साथ वहां पर आये, तो उनकी आँखें भी चमक उठीं। वह हैरानी से बस देखते रहे, चमचमाते सिक्के, दर्जनों की संख्या में। उन्होंने सिक्कों को हाथ में लेकर देखा, यह तुम्हे कहा मिले उन्होने पुछा, मैं सब बता दिया। बिना कुछ बोले फिर उन्होने उस घड़े को उठाया और घर लाकर अनाज वाले कोठे में छिपा दिया।

उन्होंने मुझसे कहा कि इस बारे में मै किसी को कुछ न बताऊँ — न नानी को, न गाँव में किसी को। मैं चुप रहा। वो रात मैं नानाजी से लिपटकर सो गया, जैसे कोई बहुत बड़ा काम कर दिया हो।

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अगले दिन नानी कहीं बाहर गई थीं। नानाजी ने मुझे बुलाया और कहा, "चलो, ज़रा फिर से देखते हैं।"

हमने कोठा खोला। घड़ा बाहर निकाला।

पर जैसे ही घड़े का ढक्कन हटाया गया — हम दोनों सन्न रह गए।

अब वहाँ सिक्के नहीं थे। सिर्फ काले कोयले थे। हम हैरान रह गए। कल जो सिक्के चमक रहे थे, आज वो गायब थे।

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नानाजी ने कुछ नहीं कहा। घड़े को वापस कोठे में रख दिया और उस बारे में फिर कभी बात नहीं की।

मैं भी चुप रहा। नानी को नहीं बताया। वो सिक्के कहाँ गए — ये सवाल आज भी मेरे मन में है।

क्या वो खज़ाना असली था? क्या कोई देख रहा था और उसने बदल दिया? या वो कुछ ऐसा था जो सिर्फ बच्चों को ही दिखता है?

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