Rahasya katha: "परछाई का पीछा – देवराज राणा की जासूसी कहानी"

रविवार, 8 जून 2025

"परछाई का पीछा – देवराज राणा की जासूसी कहानी"

 

"देवराज राणा पर आधारित हिंदी जासूसी कहानी 'परछाई का पीछा' का बुक कवर जिसमें डार्क कोट और सिगार के साथ गंभीर चेहरा दिखाया गया है"

मुंबई की सर्द और गीली दोपहर थी। सड़कें पानी से भरी थीं, और आसमान में काले बादल उमड़ रहे थे।

देवराज राणा अपनी छोटी-सी ऑफिस की खिड़की के पास बैठा सिगार के कश ले रहा था। दीवारों पर पुराने केसों की फाइलें, कुछ अंधेरे में डूबे फोटोग्राफ, और एक कोना जिसमें 9 साल पहले का एक अधूरा फोल्डर रखा था — “परछाई”।

उस केस ने उसे तोड़ा था।

तभी दरवाज़ा खुला।

भीगी नीली साड़ी में एक औरत भीतर आई, चेहरे पर थकान और आँखों में डर।

“मेरा नाम अनामिका शेखर है,” उसने धीमी आवाज़ में कहा।

“मेरे भाई विवेक तीन दिन से लापता हैं। उन्होंने ये चिट्ठी छोड़ी…”

देवराज ने चिट्ठी ली:

 "अगर मैं गायब हो जाऊँ, तो समझ लेना — परछाई वापस आ गई है।"

उसका दिल एक पल को रुक गया।

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9 साल पहले, एक रहस्यमयी कातिल "परछाई" ने मुंबई में 4 हत्याएं की थीं — बिना कोई सबूत छोड़े, बिना कोई चेहरा दिखाए।

सिर्फ देवराज उसकी चाल पहचानता था — धीमी, छाया जैसी, लेकिन तेज़ और घातक।

आखिरी केस में परछाई एक छोटी लड़की को लेकर गायब हो गया था। देवराज ने उसका पीछा किया था, लेकिन एक विस्फोट में सब कुछ खत्म हो गया — केस, सबूत, और देवराज का भरोसा खुद पर।

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देवराज ने अनामिका का केस लिया। उसने विवेक की गतिविधियाँ ट्रेस कीं।

विवेक एक NGO के ज़रिए ट्रैफिकिंग रैकेट की तह में जा रहा था। लेकिन NGO नकली निकली।

सीसीटीवी फुटेज में जो दिखा, वो देवराज के रोंगटे खड़े कर देने वाला था —

एक लंबा आदमी, काले कोट में, धीमी चाल में चलते हुए… ठीक वैसे ही जैसे 9 साल पहले "परछाई" चलता था।


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देवराज ने उस बिल्डिंग का पीछा किया जहां विवेक आखिरी बार गया था — एक वीरान गोदाम।

भीतर अंधेरा था। हर कदम पर खतरा। फिर एक आवाज़ गूंजी:

"तू फिर आ गया... राणा?"

देवराज के शरीर में सिहरन दौड़ गई।

छाया से एक चेहरा निकला —

वही जिसने 9 साल पहले उसे जलती इमारत में बंद कर दिया था। वही जो मरा हुआ समझा गया था।

लेकिन अब वो ज़िंदा था —

नकाब में छिपा, मगर चाल से पहचाना गया — परछाई।

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गोदाम में चालों का खेल शुरू हुआ।

परछाई ने पूरा ट्रैप तैयार किया था — वो जानता था कि देवराज आएगा।

लेकिन देवराज राणा अब पुराना देवराज नहीं था।

उसने उस दिन के बाद हर केस, हर क़दम, हर मूव को उस छाया की चाल के हिसाब से पढ़ना शुरू किया था।

एक घंटा चला वो खेल — शब्दों से, डर से, चालों से।

आखिरकार, देवराज ने उसी आग से जवाब दिया —

गोदाम में आग लगाई, और छाया को उसी आग में घसीट लिया।

इस बार वो भाग नहीं सका। उसका नकाब जला... चेहरा दिखा।

वो कोई और नहीं, बल्कि खुद विवेक शेखर था।


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विवेक असल में उस रैकेट का हिस्सा था। वो ही "परछाई" बनकर उन बच्चों को गायब करवा रहा था।

जब NGO का नाम बाहर आने लगा, उसने खुद को लापता दिखाया — ताकि किसी को शक न हो।

पर अनामिका को उसकी आँखों में कुछ अलग दिखा था — डर नहीं, अपराधबोध।

वो देवराज को लाकर अपनी आत्मा को शांत करना चाहती थी — शायद अनजाने ही।

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दो दिन बाद देवराज फिर अपनी खिड़की के पास बैठा था।

सिगार की राख गिरती रही, बाहर बारिश रुक चुकी थी।


अनामिका चुपचाप आई, और एक लिफाफा रखा —

"मेरे भाई को माफ मत कीजिए। लेकिन आपको धन्यवाद, कि आपने उसकी परछाई को खत्म किया।"


देवराज कुछ नहीं बोला।

उसने वो पुराना फोल्डर उठाया… और पहली बार उसमें लिखा:

 “परछाई अब नहीं लौटेगी।”


समाप्त

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