Rahasya katha: "दूसरा चेहरा: एक मनोवैज्ञानिक थ्रिलर जो आपको खुद पर शक करने पर मजबूर कर देगा"

गुरुवार, 5 जून 2025

"दूसरा चेहरा: एक मनोवैज्ञानिक थ्रिलर जो आपको खुद पर शक करने पर मजबूर कर देगा"

 

"आईने में अपने ही डरावने रूप को देखता एक व्यक्ति – हिंदी मनोवैज्ञानिक थ्रिलर 'दूसरा चेहरा' के लिए प्रतीकात्मक चित्र"

"कभी-कभी सबसे खतरनाक चेहरा वही होता है... जो आईने में दिखता है।"


राघव, एक शांत, गम्भीर और एकाकी आदमी।

दिल्ली के एक एड-एजेंसी में क्रिएटिव डायरेक्टर था। 38 साल का, पर चेहरे पर गहराई थी… ऐसी, जो किताबों से कम और जले हुए अनुभवों से ज़्यादा बनी थी।


पिछले कुछ महीनों से, कुछ अजीब चीज़ें हो रही थीं —

वो जगहें जहाँ वो जाता, वहाँ लोग उसे पहचानने से इनकार करते।

कोई उसे देख कर डरता, तो कोई उसे अनदेखा कर देता — जैसे वो अदृश्य हो।


पर एक रात… चीज़ें बदल गईं।



रात के 2:12 बजे।

वो अपने अपार्टमेंट में सोने की कोशिश कर रहा था जब दरवाजे पर दस्तक हुई।


“कौन है?”

कोई जवाब नहीं।


जब उसने दरवाजा खोला, वहाँ कोई नहीं था… सिर्फ एक पुराना लिफाफा, जिस पर लिखा था:


 "तुम्हारे भीतर कोई और है, जो तुम्हें बदल रहा है।"



और साथ में एक फोटो —

राघव की ही तस्वीर थी, लेकिन कुछ अलग…

चेहरे पर ऐसी हिंसा थी, जो कभी उसमें थी ही नहीं।



अगले दिन ऑफिस में, राघव को सस्पेंड कर दिया गया।

क्योंकि CCTV फुटेज में साफ दिखा था कि वो एक जूनियर कर्मचारी को धमका रहा है, उसे धक्का दे रहा है।


राघव चौंक गया।

"ये मैं नहीं हूँ," उसने कहा।


"फुटेज कुछ और कहती है," HR ने कहा।



अब उसके पास एक ही रास्ता था —

अपने पुराने कॉलेज फ्रेंड इरा से मिलना, जो अब एक साइकोथैरेपिस्ट थी।


"राघव, तुम्हें डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर हो सकता है..."

"तुम्हारे भीतर कोई और 'व्यक्तित्व' पनप रहा है… शायद बचपन के किसी आघात की वजह से।"


राघव को हंसी आ गई। "डॉक्टर बन गई है तू, पर मजाक करना नहीं भूली।"


"ये मजाक नहीं है, राघव," इरा ने कहा।

"इसलिए तुम्हें हर बार लग रहा है कि लोग तुम्हें पहचानते नहीं।

क्योंकि कभी तुम राघव हो, कभी वो दूसरा चेहरा।"


इसे पढीये

रात को राघव ने खुद को एक कैमरे से रिकॉर्ड करना शुरू किया।


अगली सुबह, जब वो वीडियो प्ले करता है —

उसमें वो खुद को शीशे में देखकर चिल्ला रहा है,

अपने ही चेहरे को नोंचने की कोशिश कर रहा है।


और फिर एक सीन —

वो एक अजनबी महिला से मिल रहा है… प्यार से बात कर रहा है… और फिर अचानक उसका गला दबा देता है।


"ये मैंने नहीं किया… ये मैं नहीं हूँ…"



वो महिला अगले दिन न्यूज में थी —

"अपराधी की पहचान नहीं हो सकी"

लेकिन उसकी जेब से जो पर्स मिला, उसमें एक विज़िटिंग कार्ड था — राघव वर्मा का।


अब मामला पुलिस तक पहुँच चुका था।


राघव भाग गया।



तीन दिन तक वह पुरानी फैक्ट्री में छिपा रहा — वहीं, जहाँ वो बचपन में अपने पिता से छिपता था।

वहीं उसे याद आया —

उसका जुड़वां भाई… नील।

जो बचपन में मर गया था, लेकिन... मरने से पहले उसे पीटा गया था।


पिता ने राघव को हमेशा दोषी ठहराया।


शायद नील की आत्मा उसके भीतर कहीं छिप गई थी —

या फिर उसका "चेहरा"।



इरा ने उसे ढूंढ़ निकाला।


"तुम्हें खुद से अलग होना होगा, राघव। वरना ये तुम्हें खत्म कर देगा।"


राघव ने कांपते हुए पूछा:

"अगर मैं वो बन जाऊँ… और खुद को मार दूँ… क्या तब वो मरेगा?"


इरा चुप रही।



अगली सुबह पुलिस को एक शव मिला —

चेहरा बुरी तरह बिगड़ा हुआ था, पहचान नहीं हो सकी।


पास ही पड़ा था एक कैमरा, जिसमें राघव की अंतिम रिकॉर्डिंग थी:


 “मैं राघव हूँ… और मैं उसे अपने साथ ले जा रहा हूँ।”

“अब कोई दूसरा चेहरा नहीं बचेगा।”



6 महीने बाद इरा की क्लिनिक में एक नया मरीज आया।

उसने कहा, "मुझे ऐसा लगता है कि मैं कभी राघव नाम का इंसान था।"


इरा मुस्कुराई नहीं। उसकी रूह काँप गई।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

"रात का रास्ता: जो लौटने नहीं देता"

  सर्दी की चुभन और बाइक की आवाज़ बस यही साथ थी मेरे। रात के करीब 1:40 बजे होंगे… मैं वापस घर लौट रहा था एक दोस्त की शादी से — सड़क बिल्कु...