Rahasya katha: "टंकी का साया: एक रात जो कभी नहीं गुज़री"

रविवार, 29 जून 2025

"टंकी का साया: एक रात जो कभी नहीं गुज़री"

 

A chilling book cover of a Hindi horror story "टंकी का साया" showing a boy sleeping with a haunted radio on the table and a dark shadow lurking behind him.
"टंकी का साया" — एक डरावनी रात की कहानी, जहाँ एक पुराना रेडियो और एक रहस्यमय साया, हमेशा के लिए नींद छीन लेता है।

मैं मुंबई के इस पुराने बिल्डिंग में पिछले पाँच साल से रह रहा हूँ। एकदम टॉप फ्लोर पर मेरा छोटा सा कमरा है — अकेला, शांत, और बिल्कुल वैसा जैसा मुझे पसंद है। छत से सटा हुआ, बस एक दरवाज़ा और एक खिड़की, और बाहर खुला आसमान।

मेरे कमरे के ठीक ऊपर है बिल्डिंग की छत… जहाँ दो नीली पानी की टंकियां हैं। और उनके पीछे एक है... तीसरी टंकी।
काली, जंग लगी, तिरछी सी — जैसे किसी ने बरसों से छुआ ही न हो।

बचपन में जब पहली बार छत पर गया था, दादी ने कहा था —
"उस टंकी को मत छूना। उसमें किसी का वास है।"
तब हँसी आई थी… लेकिन वो बात जाने क्यों आज तक भूली नहीं।

---

🌧️ पहली हलचल – जब टंकी से कोई गुनगुनाया...

चार दिन पहले बारिश शुरू हुई थी।
रात के करीब साढ़े बारह बजे थे। बाहर बूंदें टीन की छत पर बज रही थीं… और मैं नींद में जाने ही वाला था कि एक अजीब आवाज़ आई।

गुनगुनाने की आवाज़...

बहुत धीमी, जैसे कोई छत के ऊपर बैठा हो… और पुराने जमाने का कोई लोकगीत गा रहा हो।
आवाज़… किसी औरत की थी।

मैंने रेडियो बंद किया, मोबाइल की बैटरी देखी — सब शांत था। लेकिन वो गुनगुनाहट लगातार चल रही थी।

मैं खिड़की तक गया, गर्दन ऊपर की और उठाई… कुछ नहीं दिखा। लेकिन अब आवाज़ थोड़ी पास आ गई थी।
जैसे कोई मेरे कमरे की छत पर घूम रहा हो… धीरे-धीरे।


Read this;

---

😨 दूसरी रात – कुछ गिरा, कुछ हिला, कुछ बदला

अगली रात, मैंने ठीक 11 बजे दरवाज़ा बंद कर दिया था।
कोशिश की कि जल्दी सो जाऊं — लेकिन ठीक 12:13 पर वही गाना फिर से बजने लगा।
इस बार सिर्फ गुनगुनाहट नहीं थी — टंकी में किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ भी आई। जैसे किसी ने पानी में पत्थर फेंका हो।

मैंने दरवाज़ा खोल कर छत की सीढ़ियों की ओर देखा… लेकिन वहाँ सिर्फ अंधेरा था।

मुझे पहली बार सच में डर लगा।

---

🪞 तीसरी रात – टंकी के ढक्कन में चेहरा...

तीसरी रात, हिम्मत करके मैं छत पर गया।
बारिश हल्की थी, हवा चल रही थी। दो टंकियां तो चमक रही थीं… लेकिन तीसरी टंकी —

वहाँ जैसे कुछ भीगता हुआ बैठा था। काले बाल, झुकी हुई पीठ… और जैसे ही मैंने करीब जाना चाहा — टंकी का ढक्कन हिला।

मैं वहीं रुक गया।

फिर ढक्कन के बीच से एक चेहरा झाँका — एकदम सीधा मेरी ओर, गीला, सफेद, बिना पलक झपकाए।

मैं उल्टे पाँव भागा।


Read this;


---

🌄 सुबह – जब सीढ़ियों पर पानी के निशान थे...

सुबह जब नीचे उतर रहा था, तो सीढ़ियों पर गीले पैरों के निशान थे — जो टंकी की दिशा से नीचे मेरे दरवाज़े तक आए थे… और फिर लौट गए।


---

अब चार दिन हो चुके हैं।
मैं छत पर नहीं गया।

लेकिन हर रात 12:13 पर वही गाना अब मेरे कमरे के अंदर सुनाई देता है।

---

"वो तीसरी टंकी अब खाली नहीं रही... अब उसमें कुछ है। और शायद… वो मुझे पहचान चुका है।"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

"रात का रास्ता: जो लौटने नहीं देता"

  सर्दी की चुभन और बाइक की आवाज़ बस यही साथ थी मेरे। रात के करीब 1:40 बजे होंगे… मैं वापस घर लौट रहा था एक दोस्त की शादी से — सड़क बिल्कु...