रहस्यमयी गुफा – काले शिलाखंड का शाप

    

“सतपुड़ा की पहाड़ियों में घने जंगल के बीच चार खोजी—देवराज, आहना, कबीर और प्रवीर—एक संकरे रास्ते से प्राचीन गुफा की ओर बढ़ रहे हैं। दूर काई जमी चट्टानें और हल्की धुंध पूरी जगह को रहस्यमयी बना रही है।”
हर महान रहस्य… जंगल की चुप्पी से शुरू होता है।”

सतपुड़ा की पहाड़ियों का मौसम हमेशा अजीब रहता है — सुबह हल्की धूप, दोपहर में अचानक धुंध, और शाम तक ठंड ऐसा घेर लेती है जैसे पहाड़ किसी को अपने भीतर समेट लेना चाहते हों। इन्हीं पहाड़ियों के बीच, एक धँसी हुई घाटी में, एक ऐसी गुफा मिली जिसने दुनिया को हैरान कर दिया, और खोजकर्ताओं को मौत दे दी।

यह कहानी है देवराज, 28 वर्षीय युवा पुरातत्व–अन्वेषक की…

यह कहानी है उस खोज की, जिसे उसने कभी ढूँढने की कोशिश नहीं की थी।

और यह कहानी है उस शाप की, जिसने उसकी जिंदगी की सांसे गिनकर रख दीं।


देवराज को बचपन से पहाड़ और जंगल आकर्षित करते थे। उसका घर पचमढ़ी के पास एक छोटे से कस्बे में था। पिता वन-विभाग में थे, और उनके साथ जाते–जाते देव को पेड़ों, चट्टानों, मिट्टी की गंध और हवा की आवाज़ से एक अजीब रिश्ता हो गया था। वो चीज़ों में छिपा इतिहास देख लेता था — जैसे पत्थर भी उससे अपना सच कह देते हों।

सन् 2025 की गर्मियों में उसे एक चिट्ठी मिली।

चिट्ठी में लिखा था—

“सतपुड़ा की दक्षिणी राह पर एक नई गुफा मिली है।

तुम आओगे तो अच्छा रहेगा।

— प्रोफेसर इंदरनाथ शर्मा”

प्रोफेसर शर्मा उसके गुरु थे, भारत के सबसे बड़े पुरातत्व–विशेषज्ञों में से एक।

देव को हैरानी हुई — प्रोफेसर ने कभी इतनी छोटी चिट्ठी नहीं भेजी।

फिर एक और अजीब बात हुई।

चिट्ठी पर काले रंग से बनी एक आकृति थी—

दो गोल आँखें, नीचे लम्बा चेहरा, और उसके बीच में बनाया हुआ ‘‘V’’ जैसा निशान।

देव ने सोचा, “शायद प्रोफेसर की टीम ने गुफा में कुछ निशान पाए होंगे।”

वह उसी शाम पचमढ़ी के लिए निकल गया।

पहाड़ियों का गाँव और तीन मौतें

गाँव का नाम था — झिन्ना

जहाँ लोग अंधविश्वासी नहीं, बल्कि पहाड़ की सच्चाई से डरते थे।

देव जब गाँव पहुँचा तो माहौल अजीब था।

लोग उसे देखते तो तुरंत अपनी नजरें झुका लेते।

कुछ तो उसे देखकर घर के अंदर चले गए।

देव ने सोचा—

“ऐसा क्या देखा मैंने? या ये लोग किसी और चीज से डर रहे हैं?”

गाँव के बुजुर्ग कबराजी ने उसे रोका—

“तुम वही हो न… प्रोफेसर शर्मा का लड़का?”

“हाँ। क्यों?”

बुजुर्ग की आवाज काँप गई।

“तीन लोग गए थे अंदर… तीनों मरे पड़े मिले।”

“कैसे?”

“शरीर बिल्कुल जैसे… किसी ने खींच लिया हो। जैसे जान नहीं, कुछ और निकाल ली गई हो।”

देव के भीतर बेचैनी फैल गई।

उसने पूछा, “प्रोफेसर कहाँ हैं?”

कबराजी ने आह भरी।

“वो गुफा के पास शिविर में हैं। बस… बदल गए हैं थोड़ा।”

देव वहीं से शिविर की ओर चल दिया।

शिविर बिल्कुल चुप था, जैसे लोग सो नहीं रहे, बल्कि इंतज़ार कर रहे हों।

देव अंदर गया तो उसने प्रोफेसर शर्मा को देखा।

वो चुपचाप बैठे थे।

उनके हाथ काँप रहे थे।

आँखें लाल, नींद उड़ी हुई।

देव ने पूछा—

“सर, ये क्या हो गया है यहाँ?”

प्रोफेसर ने धीरे–धीरे सिर उठाया।

“देवराज… तुम आ गए… अच्छा किया।”

“लेकिन ये मौतें? लोग डरे हुए क्यों हैं? और ये निशान?”

देव ने चिट्ठी की आकृति दिखाई।

प्रोफेसर के चेहरे पर डर चमक उठा।

“ये… ये निशान… तुमको किसने भेजा?”

“आपने ही।”

“नहीं देव… मैंने कोई निशान नहीं बनाया…”

देव का दिल एक पल को सन्न हो गया।

प्रोफेसर आगे बोले—

“जिस दिन हमने गुफा खोली, उसी दिन ये आकृति दीवार पर दिखी थी। और उसी रात पहला आदमी… मर गया।”

देव ने महसूस किया—गुफा सिर्फ एक पुरातत्व–स्थल नहीं थी।

वह कुछ और थी। कुछ ऐसा जो इंसानों को अपने पास नहीं चाहता था।


गुफा की खोज के लिए अब एक नई छोटी टीम बनाई गई—

1. देवराज — अन्वेषक

जिद्दी। सवाल पूछने से नहीं डरने वाला।

2. प्रोफेसर शर्मा — ज्ञान का पहाड़, पर मन से टूटा हुआ

कुछ ऐसा देखा था गुफा में, जिसे वो किसी को बताने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे।

3. आरव — फोटोग्राफर

हमेशा हँसने वाला, पर चीजें बहुत गहराई से देखता था।

4. नीलम — भूगर्भ–विशेषज्ञ

चट्टानों की बनावट से 10,000 साल का इतिहास पढ़ लेती थी।

5. माधव — स्थानीय युवक

गुफा के बारे में किंवदंतियाँ जानता था।


शाम होते ही टीम गुफा के मुहाने पर पहुँची।

जैसे ही वे पास आए, हवा का तापमान अचानक ठंडा हो गया।

नीलम ने कहा—

“ये सामान्य नहीं है… यहाँ हवा बह ही नहीं रही।”

गुफा का प्रवेशद्वार तिरछा था, जैसे किसी ने उसे अंदर खींच लिया हो।

दीवारों पर अजीब काली लकीरें।

जैसे किसी ने उंगलियों को कोयले में डुबोकर खींच दिया हो।

माधव ने धीमे स्वर में कहा—

“ये… वही निशान हैं। गुफा का देवीरक्षक। लोग कहते हैं ये किसी आत्मा का घर है।”

देव हँसा—

“आत्मा? नहीं माधव। ये बस प्राकृतिक आकृतियाँ हैं—”

पर तभी…

गुफा के अंदर से एक बहुत धीमी… पर साफ़ आवाज़ निकली।

“देव…”

देवराज का दिल जम गया।

उसने टॉर्च अंदर फेंकी—

टॉर्च जमीन पर नहीं गिरी।

बल्कि… एक पल में जैसे अँधेरे ने उसे निगल लिया।

आरव काँप गया।

“ये आवाज़… इसने तुम्हारा नाम कैसे लिया?”

प्रोफेसर शर्मा चुप थे।

उनकी आँखों में डर का वही रूप था… जो कभी गुफा में पहली बार देखने के बाद आया था।

“गुफा के भीतर मशालों की रोशनी में दीवारों पर खुदे प्राचीन चिह्न चमक रहे हैं। खोजी चारों दीवारों पर उभरे प्रतीकों को ध्यान से देख रहे हैं—मानो सामने इतिहास सांस ले रहा हो।”
“कभी-कभी जवाब शब्दों में नहीं… पत्थरों की खामोशी में मिलते हैं।”


टीम गुफा में घुसी।

पहले तो सब सामान्य लगा—पुराने युग की दीवारें, चित्र, हाथों के निशान।

पर जैसे–जैसे वे आगे बढ़ते गए…

दीवारें चमकने लगीं।

जैसे उन पर चिपका काला पत्थर टॉर्च की रोशनी निगल रहा हो।

नीलम ने दीवार को छुआ।

“ये पत्थर… ये सामान्य नहीं है। ये प्रकाश को शोषित कर रहा है! इतनी विशेषता किसी चट्टान में नहीं होती।”

देवराज ने कहा—

“शायद कोई खनिज—”

पर फिर…

दीवार पर वही आकृति दिखी—

दो आँखें, लम्बा चेहरा, बीच में ‘‘V’’।

पर इस बार आकृति हिल रही थी।

जैसे साँस ले रही हो।

आरव डर गया।

“चलो वापस चलते हैं—”

देव ने उसे रोका।

“नहीं। ये जगह हमें कुछ बताना चाहती है। तीन लोग क्यों मरे? ये शिलाचित्र कैसे हैं? इसका इतिहास है—हमें समझना होगा।”

सब देव की जिद के आगे हार गए।

और वे और अंदर बढ़े।

गुफा के बीचोंबीच एक विशाल हॉल था।

बीच में काले पत्थर का एक शिलाखंड खड़ा था—

चिकना। चमकदार।

जैसे किसी ने इसे अभी तराशा हो।

उसके ऊपर कुछ चिन्ह उकेरे थे—

जिन्हें देखकर नीलम की आवाज काँप गई।

“देव… ये चिन्ह इतिहास से बाहर हैं।

ये किसी भी भाषा के नहीं हैं…

ये पूर्व–मानव सभ्यता के हैं…”

देव ने कैमरा निकाला।

तभी उसने देखा—

शिलाखंड पर खून जैसे लाल उभार उभर रहा था।

धीरे धीरे आकार बन रहा था—

एक लड़की का चेहरा।

देव पीछे हट गया।

“ये… क्या है?”

प्रोफेसर बोले—

“यही है… मौत का दरवाज़ा। वही जिसने तीन लोगों को मारा।

ये शिलाखंड इंसानों की ऊर्जा खींचता है।”

देव ने पूछा—

“तो इसका इतिहास? कौन बनाता था इसे?”

प्रोफेसर ने साँस रोकी।

“यह 7,000 साल पुरानी जनजाति ‘कलबाह’ की निशानी है।

वे मानते थे कि यह शिलाखंड देवी का शरीर है…

और हर साल एक बलि दी जाती थी।”

आरव पीछे हटते हुए बोला—

“और अगर बलि ना दी जाए?”

प्रोफेसर की आवाज धीमी हो गई—

“तो शिलाखंड खुद लेना शुरू करता है।”


अचानक पीछे से किसी के गिरने की आवाज आई।

नीलम गिर पड़ी थी।

उसकी आँखें खुली थीं… पर पुतलियाँ सफ़ेद।

देव दौड़कर गया—

“नीलम! मेरी तरफ देखो!”

वह हलके से बोली—

“वह… जाग गया है…”

अचानक दीवार पर काले धुएँ जैसा फैलाव शुरू हुआ।

फिर वह धुआँ आकार लेने लगा—

लम्बी टांगें

लम्बे हाथ

दो गोल चमकती आँखें

और वही ‘‘V’’ आकृति।

आरव चीख पड़ा—

“ये वही है! ये जिंदा है!”

देव पत्थर के पास खड़ा रहा—

“तुम लोग भागो! मैं इसे रोकता हूँ!”

प्रोफेसर ने उसका हाथ पकड़ लिया—

“नहीं देव… तुम नहीं जानते… ये—”

पर देवराज की आँखों में आग थी।

वो शिलाखंड को छूने बढ़ा।

धुआँ–आकृति एकदम उसके सामने आ गई।

फुसफुसाहट—

“नहीं… तुम नहीं… तुम चुने गए हो।”

देव का हाथ पत्थर पर पड़ा।

और फिर—

एक तेज़ सफेद रोशनी ने पूरी गुफा को भर दिया।

सब गिर पड़े।

धुआँ चीखने लगा।

जैसे कोई हजारों साल बाद पहली बार जल रहा हो।

गुफा हिलने लगी।

छत टूटने लगी।

सबने भागने की कोशिश की।

प्रोफेसर ने देव को खींचा—

“भागो देव! ये ढह रही है!”

देवराज ने देखा

शिलाखंड अब दरारे छोड़ रहा था

और उन दरारों में कोई… आकृति करवट ले रही थी।

वह मुड़ा

दौड़ पड़ा

और आखिरी क्षण में गुफा का दरवाज़ा बाहर गिरा।

गुफा बंद हो गई—

अंदर की हर आवाज़ दब गई।

“रात का समय, शिविर (कैम्प) के बाहर तीन खोजियों की मृत देह रहस्यमयी स्थिति में पड़ी है। सामने मिट्टी पर फैले कुछ पुराने सोने के सिक्के चमक रहे हैं, और दूर जंगल में किसी अनदेखे खतरे का संकेत जैसे मंडरा रहा है।”
“कुछ खजाने चमकते हैं… लेकिन उनकी परछाइयाँ अँधेरा लेकर आती हैं।"


देव, प्रोफेसर, आरव और माधव बाहर गिर पड़े।

सब घायल थे।

पर जिंदा थे।

आरव ने पूछा—

“ये… ये सब क्या था?”

प्रोफेसर ने हाँफते हुए कहा—

“हमने गुफा को नहीं खोला था…

गुफा ने हमें बुलाया था।”

माधव डरते हुए बोला—

“और अब?”

प्रोफेसर ने देव की तरफ देखा।

देव की हथेली में एक काला निशान था—

दो गोल आँखें

और बीच में ‘‘V’’।

देव धीमे स्वर में बोला—

“अब… ये मुझसे जुड़ेगा।

क्योंकि मैंने दरवाज़े को छुआ है।”

तीनों हैरान रह गए।

देव की आँखों में कुछ बदल चुका था।

जैसे गुफा का अंधेरा अब उसके भीतर घर कर चुका था।

उस रात गाँव में अजीब सी बर्फीली हवा चली।

गुफा के पास कभी जाना मना कर दिया गया।

सरकार ने क्षेत्र बंद कर दिया।

नीलम धीरे–धीरे ठीक होने लगी।

पर उसकी आँखों में भी वही डर था।

प्रोफेसर ने कहा—

“देव… ये खत्म नहीं हुआ है…

तुम्हारे हाथ का निशान… इसका मतलब है कि वो अब भी ज़िंदा है।”

देव ने आसमान की तरफ देखा।

उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी।

"मैं लौटूँगा…

गुफा ने जो दिखाया… उसका असली सच अब भी दबा हुआ है।

ये सिर्फ शुरुआत है।"

जारी रहेगा…

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