Rahasya katha: "आख़िरी बस नहीं आई..."

रविवार, 6 जुलाई 2025

"आख़िरी बस नहीं आई..."

 

A foggy haunted road at night with a mysterious shadow and bus lights approaching, inspired by a horror story.

आख़िरी बस आई थी... लेकिन शायद मैं नहीं लौटा।


उस दिन शहर में इंटरव्यू था।
काम थोड़ा लेट हुआ, तो सोचा कि आख़िरी बस पकड़ लूं।
सर्दियों की शाम थी —
ठंडी हवा चेहरे पर लग रही थी जैसे किसी ने हलके से थपकी मारी हो।
बस स्टॉप शहर से बाहर था, थोड़ा सुनसान…
आसपास कोई दुकान नहीं, सिर्फ एक लाइट और एक पुरानी सी लोहे की बेंच।
मैं पहुंचा तो घड़ी ने बताया — 11:17 PM
अंतिम बस अक्सर 11:30 पर आती है।
थोड़ा थका था, तो बेंच पर बैठ गया।

---
👀 "कोई और भी था वहां..."
मैंने ध्यान नहीं दिया पहले,
पर बेंच के दूसरे कोने पर एक औरत बैठी थी — सफेद साड़ी में।
चेहरा झुका हुआ…
बाल खुले हुए…
और उसकी साँसों की आवाज़,
सर्द रात में साफ़ सुनाई दे रही थी।
मैंने पूछा — "बस आएगी ना?"
उसने धीमे से कहा —
"आख़िरी बस थोड़ी देर से आती है, इंतज़ार कर लो..."
आवाज़ में कुछ अजीब था —
ना सर्दी, ना गर्मी…
ना अपनापन, ना डर।

Read this;


---
💨 "हवा बदली, और वो नहीं दिखी..."
मैंने एक मिनट को मुड़कर फोन देखा —
WhatsApp पर कोई पुराना वीडियो खुला।
जैसे ही नजर उठाई…
वो औरत वहां नहीं थी।
ना कोई चलने की आवाज़, ना कोई परछाईं…
बस… ग़ायब।

---

🚌 "बस आई — लेकिन…"
करीब 11:37 पर एक पुरानी सी बस आई —
पीली बत्ती, टूटी खिड़की, और ड्राइवर का चेहरा ढंका हुआ।
मैंने हाथ दिया — रुकी।
ड्राइवर ने कुछ नहीं कहा, बस दरवाज़ा खोला।
मैं चढ़ गया।
बस में सिर्फ दो लोग थे —
एक तो ड्राइवर,
और पीछे — वो ही औरत।
वही सफेद साड़ी… वही झुका चेहरा।

---
🚨 "बस चली…"
बस स्टार्ट हुई।
पर रास्ता वैसा नहीं लग रहा था जैसा रोज़ होता है।
ना कोई बोर्ड…
ना कोई और गाड़ी…
बस एक लम्बा खाली रास्ता और गहरी धुंध।
मैंने पीछे देखा —
वो औरत अब सीट से उठ गई थी, और धीरे-धीरे मेरी तरफ बढ़ रही थी।

Read this;

---

💀 "फिर क्या हुआ?"
बस की लाइट झपकने लगी…
मैंने उठकर ड्राइवर को आवाज़ दी —
"भाई, ये कौन है पीछे?"
कोई जवाब नहीं।
मैंने पीछे देखा —
कोई नहीं था।
वो औरत… गायब।
---

🌅 "अगली सुबह..."
जब आंख खुली —
मैं एक झाड़ी में था।
बस कहीं नहीं, रोड वीरान।
पास से एक आदमी गुजर रहा था —
मैंने पूछा,
"भाई यहाँ आख़िरी बस कब आई थी?"
उसने कहा —
"ये बस स्टॉप पिछले 2 साल से बंद है…
और यहां से रात को कोई बस नहीं चलती..."

---

❗ आज भी सोचता हूँ…
क्या मैं सच में चढ़ा था उस बस में?
या कोई और ले गया था मुझे… कहीं और?

आख़िरी बस नहीं आई थी…
जो आई थी, वो शायद बस नहीं थी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

"आख़िरी बस नहीं आई..."

  आख़िरी बस आई थी... लेकिन शायद मैं नहीं लौटा। उस दिन शहर में इंटरव्यू था। काम थोड़ा लेट हुआ, तो सोचा कि आख़िरी बस पकड़ लूं। सर्दियों की श...