Rahasya katha: तीसरी मंज़िल का दरवाज़ा

रविवार, 4 मई 2025

तीसरी मंज़िल का दरवाज़ा

 

"चेतावनी: यह रहस्य कहानी केवल परिपक्व पाठकों के लिए है। इसमें ऐसे तत्व शामिल हो सकते हैं जो संवेदनशील पाठकों के लिए उपयुक्त न हों, जैसे कि रहस्यमयी घटनाएँ, मानसिक तनाव, या वयस्क विषयवस्तु। कृपया अपने विवेक और बुद्धि का प्रयोग करें और अपनी सुविधा के अनुसार इस कहानी का आनंद लें।"




सातारा के पास मिरजगांव नामक एक पुराना गांव है। वहां एक विशाल लेकिन सुनसान देशमुख वाड़ा खड़ा है — सालों से वीरान, लेकिन कहानियों में ज़िंदा। गांववालों के मुताबिक इस वाड़े की तीसरी मंज़िल का दरवाज़ा कभी नहीं खोलना चाहिए। बीते सौ सालों में जिसने भी वो दरवाज़ा खोलने की हिम्मत की, वो कभी लौटकर नहीं आया।


माणिकराव जोशी — एक 28 साल का युवा पत्रकार, जो पुराने रहस्यों और लोककथाओं पर लेख लिखता था — उसे इस वाड़े की कहानी ने बेचैन कर दिया था। बरसात की एक अंधेरी शाम, जब आसमान में बिजली चमक रही थी और हवाएं डरावना संगीत बजा रही थीं, माणिकराव ने ठान लिया — वो उस तीसरी मंज़िल का दरवाज़ा खोलेगा।


रात के अंधेरे में जब वह वाड़े के भीतर घुसा, तो पुरानी लकड़ी की सीढ़ियों पर उसके कदमों की आवाज़ भी जैसे दम तोड़ रही थी। हर कदम के साथ एक ठंडी सांस उसके कानों में समा रही थी।


जब वह तीसरी मंज़िल पर पहुँचा, तो उसे महसूस हुआ कि वहां हवा ही नहीं थी — सिर्फ़ एक भयानक ख़ामोशी। दरवाज़े की दरारों से एक काला, चिपचिपा धुआं बाहर आ रहा था। दरवाज़े पर किसी अजीब भाषा में खुरच कर लिखा था —

"अगर आओगे… लौटोगे नहीं।"


माणिकराव ने हल्की-सी मुस्कान के साथ दरवाज़े को छुआ। जैसे ही दरवाज़ा खुला, एक बर्फ़-सी ठंडी हवा उसके चेहरे से टकराई। जो दृश्य उसने देखा, उसने उसके रोंगटे खड़े कर दिए।


अंदर सिर्फ़ अंधेरा नहीं था — वो अंधेरा जिंदा था।


दीवारों पर हज़ारों लाल-भूरे आंखें चमक रही थीं, जैसे हर दीवार किसी आत्मा से भरी हो। अचानक वो आंखें पिघलकर काले साये में बदल गईं। वो साये धीरे-धीरे ज़मीन पर रेंगने लगे। माणिकराव का शरीर जैसे पत्थर हो गया — वह हिल भी नहीं पा रहा था। उन सायों के बीच से एक भारी, फुसफुसाती आवाज़ आई — "तुम डरते हो…"


पढीये:

वो Nerus था — एक प्राचीन छाया प्रेत। वो इंसानी अपराधबोध, डर और पछतावे से पैदा होता है। Nerus का भोजन ही था इंसानों की यादें और उनका मानसिक संतुलन।


जैसे ही माणिकराव के मन में डर ने पहला बीज बोया, Nerus ने उसकी ओर देखा। उसकी साया जैसी उंगलियां उसके दिमाग़ में उतर गईं — और माणिकराव की सारी यादें खा गईं।

उसके माता-पिता, उसका नाम, उसका चेहरा, उसका अतीत — सबकुछ शून्य।


सिर्फ़ एक खाली खोल बचा… एक साया। और फिर तीसरी मंज़िल का दरवाज़ा धीरे से बंद हो गया।


अगली सुबह गांववालों को सिर्फ़ माणिकराव की टूटी कैमरा और नोटबुक मिली। नोटबुक के आख़िरी पन्ने पर बस एक ही वाक्य लिखा था —

"तीसरी मंज़िल का दरवाज़ा मत खोलना… Nerus अब भी जाग रहा है!"


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