"चेतावनी: यह रहस्य कहानी केवल परिपक्व पाठकों के लिए है। इसमें ऐसे तत्व शामिल हो सकते हैं जो संवेदनशील पाठकों के लिए उपयुक्त न हों, जैसे कि रहस्यमयी घटनाएँ, मानसिक तनाव, या वयस्क विषयवस्तु। कृपया अपने विवेक और बुद्धि का प्रयोग करें और अपनी सुविधा के अनुसार इस कहानी का आनंद लें।"
घने जंगलों और ऊँचे पहाड़ों के बीच बसा एक छोटा-सा गाँव, जिसका नाम था 'सावनपुर'। इस गाँव से होकर बहने वाली नदी पर बना एक पुराना पुल, जिसे लोग 'भूतिया पुल' कहते थे। वर्षों से यह पुल बदनाम था—रात में यहां कई दुर्घटनाएँ हो चुकी थीं, और लोग कहते थे कि वहां एक बूढ़े आदमी की आत्मा भटकती है। जो भी रात में उस पुल पर रुकता, उसे वह बूढ़ा लिफ्ट मांगता और फिर वह गायब हो जाता।
अजनबी जोड़ा
एक रात, शहर से आए एक नवविवाहित जोड़ा—राहुल और सिया—अपने सफर पर थे। उनका रास्ता उसी पुल से होकर गुजरता था। घड़ी ने बारह बजाए और चारों ओर सन्नाटा पसर गया। जैसे ही वे पुल पर पहुँचे, अचानक सामने एक वृद्ध व्यक्ति खड़ा हो गया। उसके कपड़े फटे थे, शरीर पर चोटों के निशान थे, और वह थरथरा रहा था।
"बेटा, क्या तुम मुझे मेरे घर तक छोड़ सकते हो?" बूढ़े ने धीमी आवाज़ में कहा।
राहुल और सिया ने एक-दूसरे की ओर देखा। बूढ़ा बेहद घायल और कमजोर लग रहा था। उन्हें डर तो लगा, लेकिन इंसानियत के नाते उन्होंने उसे अपनी गाड़ी में बैठा लिया।
अस्पताल की ओर
राहुल ने पूछा, "बाबा, आपका घर कहाँ है?"
बूढ़े ने काँपती आवाज़ में एक गाँव का नाम लिया। लेकिन सिया को उसकी हालत देखकर चिंता हुई और उसने सुझाव दिया कि पहले अस्पताल ले चलते हैं। बूढ़ा कुछ नहीं बोला, बस उनकी ओर देखता रहा।
अस्पताल पहुँचकर, डॉक्टरों ने उसका इलाज किया और कहा, "ये आदमी तो काफी पुरानी चोटों से पीड़ित लग रहा है, जैसे कोई सालों पहले दुर्घटनाग्रस्त हुआ हो।" राहुल और सिया को यह सुनकर थोड़ा अजीब लगा, पर उन्होंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।
घर का रहस्य
इलाज के बाद बूढ़े ने फिर से अपने गाँव जाने की इच्छा जताई। वे उसे बताए गए पते पर छोड़ आए और कुछ पैसे भी दिए ताकि वह अपना ध्यान रख सके। बूढ़े ने सिर्फ एक गहरी मुस्कान दी और घर के अंदर चला गया।
अगले दिन, जब राहुल और सिया फिर उसी रास्ते से गुजरे, तो उन्हें बूढ़े का हालचाल जानने की इच्छा हुई। वे उसी घर पहुँचे, पर वहाँ का नज़ारा देख उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
जहाँ पिछली रात एक ठीक-ठाक सा घर था, वहाँ अब एक उजड़ा हुआ खंडहर खड़ा था। धूल, जाले और टूटी हुई दीवारें… कुछ भी वैसा नहीं था जैसा पिछली रात देखा था।
सच्चाई का खुलासा
वे पास के एक चाय वाले से पूछते हैं, "बाबा, यहाँ जो बूढ़े रहते थे, वे कहाँ गए?"
चाय वाला हैरानी से उनकी ओर देखता है और कहता है, "बेटा, तुम कैसी बात कर रहे हो? यहाँ तो कोई नहीं रहता! कई साल पहले, एक बूढ़ा यहां था पर सावनपूर के पुल पर ह ईदुर्घटना में वह चल बसा। कहते हैं वह मदद के लिए चिल्लाता रहा, पर किसी ने भी उसकी मदद नहीं की। अगले दिन उसकी लाश उसी पुल के नीचे मिली थी। तब से उसकी आत्मा यहाँ भटक रही है। जो भी उसकी मदद नहीं करता, वह गायब हो जाता है।"
राहुल और सिया की सांसें अटक गईं। उनकी रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ गई।
"पर… बाबा तो कल हमारे साथ थे, हम उन्हें अस्पताल भी ले गये थे, उनके घावों पर पट्टी बंधवाई थी… हमने उन्हें पैसे भी दिए थे…!" सिया ने घबराते हुए कहा।
चाय वाले की आँखें बड़ी हो गईं, "शायद, तुम पहले इंसान हो जिन्होंने उसकी मदद की होगी। इसलिए उसने तुम्हें छोड़ दिया। शायद उसकी आत्मा को अब शांति मिल गई होगी…"
राहुल और सिया अब पीछे मुड़कर देखने लगे, पर वहाँ सिर्फ एक हल्की ठंडी हवा थी, जैसे कोई मुस्कुरा कर विदा ले रहा हो।
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