"चेतावनी: यह रहस्य कहानी केवल परिपक्व पाठकों के लिए है। इसमें ऐसे तत्व शामिल हो सकते हैं जो संवेदनशील पाठकों के लिए उपयुक्त न हों, जैसे कि रहस्यमयी घटनाएँ, मानसिक तनाव, या वयस्क विषयवस्तु। कृपया अपने विवेक और बुद्धि का प्रयोग करें और अपनी सुविधा के अनुसार इस कहानी का आनंद लें।"
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रमण एक शहर का लड़का था जिसे रोमांच और खोजबीन का बहुत शौक था। गर्मियों की छुट्टियों में वह अपने मामा के गांव आया, जो पहाड़ों के बीच बसा हुआ था—खूबसूरत, शांत और हरियाली से घिरा। लेकिन यह गांव रात होते ही अजीब और डरावना हो जाता था। कुछ तो राज था उस गांव का जो रमण के मन में जिज्ञासा पैदा कर रहा था।
पहली ही रात, खाने के बाद मामा ने उसे सख्त हिदायत दी—
"की चाहे कुछ भी हो, रात को कभी भी वह घर से बाहर ना जाये, चाहे कुछ भी हो।"
रमण को यह बड़ा अजीब लगा। शहर में तो वह रात को घूमने का आदी था। उसने इसका कारण पूछा, लेकिन मामा ने कुछ नहीं कहा बस वह रात को घर से बाहर ना निकले इतना ही कहा।
वह रहस्यमयी रात
अब रमण का मन जिज्ञासा से भर गया था। आखिर ऐसा क्या है इस गांव में जिसके कारण उसे रात को घर से बाहर निकलने से मना कर दिया गया था? काफी सोचने के बाद रमण ने उसी रात बाहर निकलने की सोची, जब सब लोग सो गए, तब रमण चुपचाप दबे पांव घर से बाहर निकल पड़ा।
वैसे रात ज्यादा हुई नहीं थी पर फीर भी गांव आधी रात वाले सन्नाटे में डूबा हुआ था। सारे घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ बंद थीं। गलियाँ भी बिल्कुल सुनसान थीं। यह सब देख रमण को थोड़ी घबराहट तो हुई, लेकिन उसके रोमांच के आगे यह डर फीका था, वह आगे बढ़ गया।
पर कुछ दूर चलने के बाद उसे अजीब-सी घुटन महसूस होने लगी। ठंडी हवा शरीर को कंपा रही थी। और उसे बड़ा अजीब-सा लगने लगा, उसे ऐसे लगा मानो कोई उसपर नजर रख रहा हो और उसका पीछा कर रहा हो। थोड़ी देर घुमने के बाद उसे लगा की उसे अब वापस जाना चाहीए और वह मुडा फिर तभी अचानक, चौराहे पर एक काला सायासा दिखा।
वह एक महिला जैसी आकृति थी… लेकिन जरा कुछ अजीब थी, वह रमण कोही देख रही थी।
तभी वह धीरे-धीरे रमण की ओर बढ़ने लगी। उसकी चाल अस्वाभाविक सी थी, जैसे वह हवा में तैर रही हो। उसकी आँखें चमक रही थीं, और चेहरा अंधेरे में धुंधला-सा दिख रहा था।
रमण का दिल अब तेजी से धड़कने लगा। उसे समझ नहीं आया कि क्या करे। इसलिए उसने पीछे हटने की कोशिश की, तभी वह साया और तेज़ी से उसकी ओर बढ़ने लगा।
भागने की कोशिश
यह देख रमण तो डर के मारे भागने लगा। वह अपने मामा के घर की तरफ दौड़ा, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से अब मामा का घर उसे कहीं नजर ही नहीं आ रहा था। अचानक जैसे पूरा गांव उसकी गलीया बदल गयी हो!
रमण एक घर के सामने आ पहुंचा और जोर-जोर से घर का दरवाजा खटखटाने लगा।
"कोई है? प्लीज दरवाजा खोलो!"
लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं दे रहा था। गांव वाले अपने नियमों से बंधे थे—चाहे कुछ भी हो वह रात को दरवाजा नहीं खोलने वाले थे।
साया अब रमण के करीब आ रहा था। वह अजीब तरह से हंस रहा था और उसकी यह हंसी एक ठंडी, सिरहन पैदा कर रही थी।
आखिरी उम्मीद - मंदिर
रमण पसीने से भीग चुका था। उसकी सांसे तेज हो चुकी थी। वह डर के मारे भाग रहा था। रात को घर से बाहर निकलने के अपने फैसले पर वह बड़ा पछता रहती था, तभी दौड़ते हुवे उसे उस गांव का मंदिर दिखा—पुराना, लेकिन बड़ा और चमकता हुआ।
उसे याद आया—की मंदिर में भूत कभी प्रवेश नहीं कर सकते।
बस बिना कुछ सोचे रमण पूरे वेग से मंदिर की ओर दौड़ा। वह मंदीर के पास पहुंचा और जैसे ही उसने मंदिर के अंदर कदम रखा, साया एकदम से रुक गया।
वह गुस्से में चीखने लगी, क्युकी अब वह अंदर नहीं जा सकता था।
रमण ने पहली बार उसका चेहरा साफ़-साफ़ देखा—आधी जली हुई खाल, गहरी लाल आंखें और विकृत मुस्कान।
डर से उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया, और वह बेहोश हो गया।
सच का खुलासा
सुबह जब रमण को होश आया, तो वह अपने मामा के घर में था। उसका शरीर थरथरा रहा था, और बुखार से तप रहा था।
मामा ने उसके सिर पर हाथ रखा और गहरी सांस लेते हुए बोले—
"मैंने तुम्हें बाहर न जाने के लिए कहा था, लेकिन तुम नहीं माने। अब तुम सच्चाई जान चुके हो।"
रमण की आँखों में सवाल था।
मामा ने कहना शुरू किया—
"कुछ साल पहले, इस गांव में एक औरत को डायन होने के शक में मार दिया गया था। लोगों ने उसे पेड़ से लटका कर जला दिया। लेकिन वह निर्दोष थी। अब उसकी आत्मा बदला लेने के लिए हर रात गांव में भटकती है और जो भी उसे नजर आता है, उसे मार देती है।"
रमण की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई। अब उसे समझ आया कि रात को गांव इतना सुनसान क्यों हो जाता था।
बदला हुआ रमण
उस घटना के बाद रमण बदल गया। वह बाहर जाने से भी डरने लगा। रात होते ही वह खिड़कियाँ बंद कर लेता और तकिये में मुंह छिपाकर सो जाता।
छुट्टियाँ खत्म होने के बाद वह शहर लौट आया, लेकिन अब उसकी ज़िंदगी पहले जैसी नहीं रही। वह अक्सर रातों को डर के मारे उठ बैठता।
उसे हमेशा ऐसा लगता, जैसे कोई साया अब भी उसकी तलाश में है…
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समाप्त।
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