हवेली का रहस्य
(एक रोमांचक हॉरर कहानी)
शहर से कुछ दूर, वीराने में एक 100 साल पुरानी हवेली थी। उसके मालिक विदेश में रहते थे, लेकिन हवेली के बारे में दो कहानियाँ मशहूर थीं—एक, कि वह भूतिया है और वहाँ जाने वाले कभी लौटकर नहीं आते; दूसरी, कि वहाँ एक तहखाना है जिसमें बेशकीमती खजाना छिपा है। वर्षों से कई लोग खजाने की तलाश में वहाँ गए, लेकिन कुछ कभी लौटे ही नहीं, और जो लौटे वे पागल हो गए।
पहला कदम – लालच और डर
रवि और अर्जुन—दो दोस्त, जिनमें से एक को पैसों की सख्त जरूरत थी, जबकि दूसरे को रोमांच और जिज्ञासा ने हवेली तक खींच लिया। उन्होंने हवेली के बारे में सुना था और तय किया कि वे वहाँ जाकर सच का पता लगाएंगे।
रात के अंधेरे में वे हवेली पहुँचे। चारों ओर घना जंगल और सन्नाटा था। हवेली का विशाल फाटक पुराने जंजीरों से जकड़ा था, लेकिन किसी तरह वे अंदर घुस गए। अंदर का माहौल बहुत अजीब था—हर चीज़ पर धूल जमी थी, दीवारों पर फटे हुए चित्र टंगे थे और हवा में सीलन की अजीब-सी गंध थी।
खोज की शुरुआत
शुरू में सब कुछ सामान्य लगा। उन्होंने हवेली के अलग-अलग कमरों की तलाशी ली। पुराने फर्नीचर, टूटी-फूटी सीढ़ियाँ, दीमक लगे लकड़ी के दरवाजे... लेकिन खजाने या तहखाने का कोई सुराग नहीं मिला।
फिर अचानक, हवेली में कुछ बदलने लगा। हवा भारी लगने लगी, जैसे कोई अदृश्य ताकत उनके आसपास हो। अर्जुन को लगा कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा, लेकिन जब उसने पलटकर देखा तो कोई नहीं था। रवि ने भी महसूस किया कि कोई उन पर नजर रख रहा है।
भयावह घटनाएँ शुरू होती हैं
जैसे-जैसे वे हवेली में और अंदर बढ़े, रहस्यमयी घटनाएँ तेज होने लगीं। अचानक, एक दरवाजा अपने आप खुल गया और उसके पीछे एक सीढ़ी दिखाई दी, जो तहखाने की ओर जाती थी।
दोनों ने एक-दूसरे को देखा और बिना कुछ बोले नीचे उतरने लगे। नीचे पहुँचे तो देखा कि तहखाना बड़ा और अंधकारमय था, दीवारों पर अजीब आकृतियाँ उकेरी गई थीं। तभी अर्जुन ने एक चमचमाती चीज़ देखी—सोने की मुद्राएँ!
लेकिन जैसे ही उसने सिक्के उठाने के लिए हाथ बढ़ाया, अचानक पूरा तहखाना हिलने लगा। ठंडी हवा चलने लगी और एक डरावनी चीख गूँज उठी। तभी अर्जुन की आँखें एक जगह टिक गईं—वह एक परछाई को देख रहा था।
अर्जुन का जम जाना
वह परछाई धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगी। वह एक कंकाल जैसी आकृति थी, जिसकी आँखों से लाल रोशनी निकल रही थी। अर्जुन जैसे पत्थर बन गया। उसकी साँसें रुक गईं और वह काँपने लगा।
रवि ने उसे हिलाने की कोशिश की, लेकिन अर्जुन पर कोई असर नहीं हुआ। तभी वह डरावनी आकृति आगे बढ़ी। रवि को महसूस हुआ कि वे अब बच नहीं सकते। पर वह अपनी दोस्त की जान बचाना चाहता था इसलिए उसने हिम्मत जुटाकर उस डरावनी आकृती से कहा—
"तुम जो भी हो, मेरी जान ले लो... लेकिन मेरे दोस्त को छोड़ दो!"
रहस्य का पटाक्षेप
अचानक तेज हवाएँ चलने लगीं। हवेली जोर-जोर से गड़गड़ाने लगी। रवि की आँखों के आगे अंधेरा छा गया...
जब उसकी आँखें खुलीं तो वह और अर्जुन हवेली के बाहर पड़े थे। सुबह हो चुकी थी। दोनों ज़िंदा थे, लेकिन भीतर का भय अभी भी उनकी आँखों में था।
उनके पास एक छोटी थैली पड़ी थी—सोने के सिक्कों से भरी हुई।
वे दोनों उठे और धीरे-धीरे हवेली की ओर देखा। हवेली शांत थी, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
लेकिन वे जानते थे कि वे वहाँ से ज़िंदा लौटे तो हैं, पर हवेली ने उन्हें हमेशा के लिए बदल दिया है।
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क्या हवेली ने उन्हें छोड़ दिया?
या यह खजाना भी किसी श्राप से ग्रसित था?
क्या वे इसे बेच पाएंगे, या उनके साथ भी वही होगा जो पहले के खजाना खोजने वालों के साथ हुआ?
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