Rahasya katha: अंधेरा बंगला

गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

अंधेरा बंगला

"चेतावनी: यह रहस्य कहानी केवल परिपक्व पाठकों के लिए है। इसमें ऐसे तत्व शामिल हो सकते हैं जो संवेदनशील पाठकों के लिए उपयुक्त न हों, जैसे कि रहस्यमयी घटनाएँ, मानसिक तनाव, या वयस्क विषयवस्तु। कृपया अपने विवेक और बुद्धि का प्रयोग करें और अपनी सुविधा के अनुसार इस कहानी का आनंद लें।"



नागालैंड की घनी पहाड़ियों के बीच एक सुनसान इलाका था — 'चाहोरा घाटी'। यहाँ बरसों से कोई नहीं बसता था। घाटी के एक कोने में खड़ा था एक पुराना, टूटा-फूटा बंगला — "रायगढ़ हाउस"। स्थानीय लोग कहते थे कि ये बंगला एक अमीर अंग्रेज़ परिवार का था, लेकिन एक रात पूरी फैमिली रहस्यमयी ढंग से गायब हो गई। उसके बाद से किसी ने उस बंगले में पाँव तक नहीं रखा।

लोगों की मानें तो रात को बंगले से चीखने की आवाजें आती हैं, कभी-कभी किसी औरत की हँसी, और खिड़कियों से झांकती डरावनी परछाइयाँ। कोई कहता है वहां एक आत्मा रहती है, कोई कहता है खुद बंगला ही ज़िंदा है।

साहिल मल्होत्रा, एक फ्रीलांस फोटोग्राफर, को डर नहीं लगता था। उसे इन लोककथाओं में भी ज्यादा दिलचस्पी थी। उसने इंटरनेट पर बंगले के बारे में पढ़ा और एक रात वहाँ जाकर तस्वीरें लेने की ठानी। उसे उम्मीद थी कि अगर उसे कुछ असामान्य कैद हो गया, तो उसकी फोटोज़ वायरल हो सकती हैं — नाम, शोहरत और पैसा मिल जाएगा।

अगले ही दिन सुबह-सुबह वो अपनी जीप में कैमरा, ट्राइपॉड और कुछ ज़रूरी सामान लेकर निकल पड़ा। शाम ढलते-ढलते वो चाहोरा घाटी पहुंचा। रास्ता खराब था, लेकिन रोमांच उसके मन में डर से कहीं ज्यादा था।

जैसे ही उसने बंगले के गेट पर कदम रखा, हवा एकदम सर्द हो गई। पेड़ों की शाखाएं अजीब तरह से हिल रही थीं, जैसे उसे रोक रही हों। बंगले का लकड़ी का दरवाज़ा आधा खुला था। अंदर घुप्प अंधेरा था, लेकिन उसकी आंखें धीरे-धीरे एडजस्ट हो गईं। छत से जाले लटक रहे थे, फर्श पर धूल की मोटी परत थी, और दीवारों पर समय की चुप्पी जमा हुई थी।

"परफेक्ट लोकेशन," साहिल ने बड़बड़ाते हुए ट्राइपॉड सेट किया।

कैमरा ऑन करके उसने कुछ तस्वीरें लेनी शुरू कीं। तभी... लेंस में एक हल्की सी हलचल दिखी। ज़ूम करके देखा तो एक सफेद साड़ी में कोई स्त्री खिड़की के पास खड़ी थी। उसका चेहरा साफ नहीं दिख रहा था।

साहिल ने पलटकर खिड़की की तरफ देखा — वहाँ कोई नहीं था।

.......

साहिल का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा था, पर उसने खुद को सँभाल लिया।

"शायद किसी चीज़ की परछाईं रही होगी," उसने खुद को समझाया।

लेकिन जैसे ही उसने कैमरे की स्क्रीन दोबारा देखी, उस औरत की तस्वीर बिल्कुल साफ़ दिख रही थी — वही सफेद साड़ी, खुले लंबे बाल, और झुका हुआ सिर।

"ये कोई छाया नहीं हो सकती," साहिल बड़बड़ाया।

उसने तस्वीर सेव की और बंगले की बाकी जगहों की तरफ बढ़ गया। अब वो पहली मंज़िल पर था। वहां एक लंबा गलियारा था, जिसके दोनों तरफ कमरे थे। दरवाज़े पुराने थे, कुछ आधे खुले, कुछ बंद। लकड़ी की ज़मीन पर उसके कदमों की आवाज़ गूंज रही थी।

पहला कमरा खोला — एक पुराना स्टडी रूम। धूल से भरे किताबों के शेल्फ, एक झूलती कुर्सी, और एक बंद खिड़की। जैसे ही उसने कमरे की तस्वीर लेनी चाही, कैमरा अपने आप बंद हो गया।

"बैटरी फुल थी अभी थोड़ी देर पहले!"

उसने बैटरी निकाली, दोबारा लगाई। कैमरा ऑन हुआ, लेकिन अब स्क्रीन पर अजीब सी लकीरें दिख रही थीं — जैसे किसी रेडियो की इंटरफेरेंस।

फिर अचानक स्क्रीन पर एक चेहरा उभरा — वही औरत! इस बार उसका चेहरा दिखा — उसकी आंखें बिल्कुल सफेद थीं, और होंठों पर एक डरावनी मुस्कान थी।

साहिल चौंककर पीछे हटा। पर जब उसने कैमरा नीचे किया, सामने कोई नहीं था।

वो भागकर नीचे लौटा, लेकिन मुख्य दरवाज़ा बंद हो चुका था — और अजीब बात ये थी कि बाहर की ओर नहीं, अंदर की ओर बंद!

अब वो सच में डर चुका था। खिड़कियों से बाहर देखने की कोशिश की, लेकिन हर खिड़की पर लोहे की जाली थी। मोबाइल नेटवर्क गायब था।

तभी एक कमरे से धीमी-धीमी गुनगुनाने की आवाज़ आई। जैसे कोई लोरी गा रहा हो...

"सो जा राजकुमारी, रात आई..."

उस आवाज़ में एक अजीब खिंचाव था — जैसे उसे पुकार रही हो।साहिल उस कमरे की ओर बढ़ा — और जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, कमरे में चारों तरफ बच्चों की तस्वीरें थीं। दीवार पर एक बड़ा सा पोट्रेट — एक औरत अपनी बच्ची को गोद में लिए हुए।

और पोट्रेट में जो औरत थी... वही थी जिसे साहिल ने कैमरे में देखा था।

.........

साहिल की सांसें तेज़ चल रही थीं। कमरे की दीवारों पर लगी हर तस्वीर उसे घूरती सी लग रही थी।

"ये... ये सब क्या है?" उसके मन में सवाल गूंजने लगे।

उसने पोट्रेट के नीचे लगे छोटे से नेमप्लेट को गौर से पढ़ा —

"एलिज़ा विल्सन व विद हेर डॉटर, मारिया — 1923"

तभी दीवार पर टंगी एक घड़ी, जो अब तक बंद थी, अचानक टिक-टिक करने लगी। और अगले ही पल… घंटी बजी — टन… टन… टन… बारह बार।

रात के ठीक बारह।

कमरे की सारी रोशनी एक झटके में बंद हो गई। साहिल का कैमरा ज़ोर से बीप करने लगा, और फिर एक तस्वीर अपने आप क्लिक हुई।

स्क्रीन पर जो दिखा, उसे देखकर साहिल की रीढ़ में ठंड दौड़ गई।

उस तस्वीर में वो खुद खड़ा था — लेकिन उसके पीछे, बिलकुल नज़दीक, एलिज़ा खड़ी थी — वही सफेद आंखें, वही मुस्कान।

वो पलटा — लेकिन कमरे में कोई नहीं था।

साहिल अब उस बंगले से निकलना चाहता था। पर कोई भी रास्ता खुला नहीं था। खिड़कियों पर जालियाँ, दरवाज़ा अंदर से बंद — वो फँस चुका था।

वो दौड़ते हुए हॉल की तरफ गया। वहाँ एक पुराना पियानो रखा था — और वो अपने आप बजने लगा।

"Twinkle twinkle..."

वो वही लोरी थी, जो थोड़ी देर पहले उसने सुनी थी।

अब उसे यकीन हो गया था — बंगले में कोई है। कोई आत्मा... और शायद वो सिर्फ़ मौजूद नहीं है — बल्कि जाग चुकी है।

एक मेज़ पर उसे एक पुरानी डायरी मिली — एक लेदर कवर्ड, भूरे रंग की।

उसने उसे खोला — पहला पन्ना अंग्रेज़ी में था:

> "29th October, 1923

मेरी बेटी मारिया को आज फिर वो सपना आया — जिसमें कोई काली छाया उसे ले जाने की कोशिश कर रही थी। जब मैंने उससे पूछा, तो उसने कहा, 'मम्मा, वो औरत मुझे बुलाती है… वो मुझे अपने साथ अंधेरे में ले जाना चाहती है।'

मैं डर रही हूँ। बंगले में कुछ है। मैंने अब यह तय किया है कि हम लंदन लौट जाएंगे… लेकिन शायद बहुत देर हो चुकी है।"

साहिल के हाथ काँप रहे थे।

तभी... दीवार पर लगी तस्वीरें अपने आप गिरने लगीं। हवा की एक तेज़ लहर पूरे कमरे में दौड़ गई।

और एक आवाज़ गूंजी — "तू भी उसे नहीं बचा पाएगा..."


---

साहिल ने जैसे-तैसे खुद को संभाला। उसकी आंखों में डर तो था, लेकिन साथ ही एक जिज्ञासा भी जाग चुकी थी — अगर एलिज़ा और उसकी बेटी की आत्माएं यहां फंसी हैं, तो क्यों? और कैसे?

डायरी के अगले पन्नों में लिखी बातें और भी डरावनी थीं:

> "31st October, 1923

आज मारिया गायब हो गई। मैंने पूरी हवेली छान मारी, लेकिन उसका कोई सुराग नहीं मिला। सिर्फ़ उसके कमरे में एक खिलौना पड़ा था — जो अपने आप हिल रहा था। मुझे लगता है, वही औरत उसे ले गई…

मैं आज रात इसे खत्म कर दूँगी…"


साहिल ने उस डायरी को जोर से बंद किया। तभी हॉल की दीवार में एक दरार सी उभर आई — जैसे वो किसी दरवाज़े की तरह खुलने को तैयार हो।

उसने पास जाकर दीवार को छुआ — और वो सच में खिसक गई।

पीछे एक संकरा सा तहखाना था — बिल्कुल अंधेरा।

वो टॉर्च लेकर नीचे उतरा। सीढ़ियाँ नमी और सड़े हुए लकड़ी की बदबू से भरी थीं। नीचे पहुंचते ही एक ठंडक ने उसे घेर लिया।

तहखाने में एक बड़ा दायरा था — और उसके बीच में बना था एक गोल घेरा, जिसमें कुछ अजीब से प्रतीक (symbols) बने हुए थे। बीच में एक पुराना, टूटा हुआ झूला था… और उस पर बैठी थी — एक छोटी बच्ची।

उसकी पीठ साहिल की तरफ थी।

साहिल ने कांपते हुए पूछा, "क… कौन हो तुम?"

बच्ची ने धीरे से गर्दन मोड़ी — और उसकी आंखें कोरे सफेद।

"मैं मारिया हूँ…" उसकी आवाज़ गूंजती हुई आई, "…माँ ने मुझे यहीं छोड़ा था… ताकि वो उस औरत को रोक सके…"

"कौन औरत?" साहिल ने हिम्मत करके पूछा।

"वो जो अंधेरे में रहती है… वो जो बच्चों की आत्मा खाती है… वो बंगले की असली मालकिन है।"

तभी तहखाने में तेज़ हवाएं चलने लगीं। झूले की रस्सी अपने आप हिलने लगी। छत से एक परछाई उतरी — लंबी, काली, डरावनी। उसका चेहरा नहीं था… सिर्फ़ खाली गड्ढों जैसी आंखें।

साहिल ने पीछे हटने की कोशिश की, पर वो परछाई अब हवा की तरह उसके आसपास घूम रही थी।

"तू भी इसे छोड़ कर नहीं जा पाएगा…!" वो आवाज़ गूंजी।

मारिया ने साहिल की तरफ देखा, और बोली — "मुझे इस घेरे से आज़ाद करो। तभी ये सब रुकेगा!"

साहिल ने जेब से कैमरे की फ्लैश लाइट निकाली — और जैसे ही परछाई करीब आई, उसने सीधा उसके चेहरे पर ज़ोरदार फ्लैश मारा।

एक पल के लिए सब कुछ उजाला हो गया।

चिल्लाहट… आग… और फिर… शांति।

जब साहिल को होश आया, वो बंगले के बाहर पड़ा था। सुबह हो चुकी थी। बंगला अब शांत था — जैसे कुछ हुआ ही नहीं।

उसका कैमरा वहीं पास में पड़ा था। उसने उठाकर देखा — आखिरी तस्वीर वही थी, जहाँ वो तहखाने में खड़ा था, और मारिया मुस्कुरा रही थी।

लेकिन अब… तस्वीर की बैकग्राउंड में बंगला नहीं था। सिर्फ़ एक खाली मैदान था।

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साहिल कभी भी उस बंगले में नहीं गया दोबारा।

लेकिन जब उसने इतिहासकारों से बात की, तो एक बात सामने आई —

"रायगढ़ हाउस" असल में 1923 में एक रहस्यमयी आग में जलकर राख हो गया था। और तब से वहाँ सिर्फ़ एक खाली मैदान था…

तो फिर साहिल कहाँ गया था उस रात?

कोई नहीं जानता।



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समाप्त।





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