गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

AUM-9: रहस्य का द्वार

 


नागपुर की सुबह में हल्की सी ठंड थी, लेकिन सावंत बिल्डिंग के बाहर पुलिस की गाड़ियों की लाइन और मीडिया की हलचल माहौल को और गरमा रही थी।


भीड़ से हटकर एक लंबी काली बाइक धीमे से पास आकर रुकी। चमड़े की जैकेट, आँखों पर काले चश्मे, और चेहरे पर अजीब सी शांति लिए एक शख्स बाइक से उतरा।


वो सीधे गेट के पास गया, जहां पुलिस कॉन्स्टेबल उसे रोकने ही वाला था कि ACP महाजन की नजर उस पर पड़ी।


“विक्रम?” महाजन ने चौंकते हुए कहा।


विक्रम ने चश्मा उतारा और हल्की सी मुस्कान के साथ बोला—

"कहा था न... जब तुम्हारे सारे तरीके फेल हो जाएं, तो मुझे याद करना।"


ACP ने सिर हिलाया—“तू वही पुराना है… वक्त से पहले और सवाल से आगे।”


विक्रम सावंत ग्रुप के ऑफिस में दाखिल हुआ। हर निगाह उसकी तरफ थी, पर वो सिर्फ एक कोने में रखे उस पुराने दीवार घड़ी को देख रहा था—उसकी सूई एक मिनट पीछे थी।


“यहाँ समय भी झूठ बोल रहा है…” विक्रम ने बुदबुदाया।


यही था उसका अंदाज़—छोटे इशारे, बड़ी बातें।


और इस बार मामला था सौ करोड़ का… और उससे भी ज़्यादा—एक ऐसे रहस्य का, जिसकी परतें अभी खुलनी बाकी थीं।



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विक्रम को केस में उतरे सिर्फ 15 मिनट ही हुए थे, लेकिन उसकी नज़रें पहले ही वो देख चुकी थीं, जो पुलिस वालों ने तीन दिन में नहीं देखा।


वो सावंत के केबिन में गया। दीवारों पर कीमती पेंटिंग्स, मेज पर इम्पोर्टेड सिगार का डब्बा, और पीछे एक बड़ा लॉकर—जो चुराई गई ‘चीज़’ का गवाह था।


पर विक्रम का ध्यान लॉकर पर नहीं गया।


उसकी नजर गई मेज पर रखे एक खाली कप पर… और फिर लॉकर के पास पड़े एक छोटे से टूटे हुए धागे पर।


वो झुका, धागा उठाया, और मुस्कुरा कर बोला—

"कभी-कभी चोरों से ज़्यादा सुराग बोलते हैं।"


ACP महाजन ने पूछा, "तू कहना क्या चाहता है?"


विक्रम सीधा रामकिशन सावंत की ओर मुड़ा, जो पीछे खड़ा था, चेहरे पर तनाव, पर आंखों में छुपी बेचैनी।


“रामकिशन जी,” विक्रम बोला, “आपको जितना डर चुराई गई चीज़ के खोने का है, उससे कहीं ज्यादा डर है उसके सामने आने का… क्यों?”


रामकिशन ने कुछ पल चुप रहकर कहा—

"क्योंकि वो चीज़ सिर्फ महंगी नहीं थी… वो सब कुछ खत्म कर सकती है।"


एक सन्नाटा छा गया कमरे में।


विक्रम ने एक धीमी आवाज़ में कहा—

"अब समझ में आया... ये सिर्फ चोरी नहीं... ब्लैकमेल है। और जिस दिन वो चीज़ सामने आई, किसी की दुनिया उजड़ जाएगी।"


अब विक्रम को तलाश थी उस चीज़ की, लेकिन उससे पहले वो ढूंढना चाहता था—वो पहला इंसान जो उस रात ऑफिस में दाखिल हुआ।


और उसकी खोज शुरू होती है… एक अधूरी सीसीटीवी फुटेज, एक नकली पास, और एक नाम जो रिकॉर्ड में था ही नहीं…



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विक्रम ने सीसीटीवी फुटेज को फ्रेम दर फ्रेम देखा। रात 2:16 पर कैमरे की एक झलक में, किसी की परछाई लॉकर के पास से गुजरती है। चेहरा नहीं दिख रहा… लेकिन चाल में कुछ खास था—संयमित, शांत… जैसे कोई डर नहीं था।


“ये प्रोफेशनल है,” विक्रम ने खुद से कहा।


फुटेज के साथ छेड़छाड़ हुई थी—लेकिन टेक्नोलॉजी का एक पुराना दोस्त, तिवारी, जिसने फुटेज से निकाल लिया एक फ्रेम—जिसमें दिख रही थी एक अंगुली पर नीले रंग की अंगूठी।


विक्रम ने उसे गौर से देखा।

"नीली अंगूठी... औरत है। और ये कोई आम औरत नहीं।"



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अगले दिन शाम, विक्रम पहुँचा एक पुरानी आर्ट गैलरी में—जहां शहर की रईस और राज़दार दुनिया मिलती थी। और वहीं, एक कोने में खड़ी थी वो।


ऊँची एड़ी, हल्का केसरिया दुपट्टा, और वही नीली अंगूठी।


विक्रम सीधा उसके पास गया।

“तुम्हारी अंगूठी बड़ी खास है।”


महिला मुस्कुराई—

“तुम्हारी नजर और भी खास है।”


नाम: आयशा नाइक।

पहचान: आर्ट कलेक्टर।

सच: पता नहीं।


विक्रम ने सीधा सवाल किया, “सावंत के ऑफिस में तुम क्या कर रही थीं उस रात?”


आयशा ने जवाब नहीं दिया। वो बस इतना बोली—

“जिस चीज़ की तुम तलाश कर रहे हो, विक्रम… वो अगर मिल भी गई, तो तुम्हें चैन नहीं मिलेगा।”


और वो चली गई।



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आयशा की कार दूर निकल गई, और वहीं एक बाइक पर बैठा नकाबपोश उसे फॉलो करने लगा…


विक्रम की आंखों ने सब देखा।


"अब असली खेल शुरू हुआ है…" उसने बुदबुदाते हुए कहा।


विक्रम ने आयशा का पीछा नहीं किया… क्योंकि उसे पता था—आयशा खुद उसे वहां ले जाएगी, जहां वो जाना चाहता है।


लेकिन उसने उस नकाबपोश को नहीं छोड़ा।


पुरानी गलियों से होती हुई कार एक सुनसान बंगले के पास जाकर रुकी। आयशा अंदर गई… और नकाबपोश एक मिनट बाद दीवार फांद कर पीछे से दाखिल हो गया।


लेकिन वहां पहले से कोई मौजूद था।


विक्रम।


“तुम फॉलो कर रहे हो, और मैं तुम्हें।”


नकाबपोश चौंक गया।


“अब बताओ,” विक्रम ने रिवॉल्वर निकालते हुए कहा, “तुम कौन हो और आयशा के पीछे क्यों हो?”


नकाबपोश ने नकाब उतारा।


नाम: कबीर

पहचान: "पूर्व खुफिया अधिकारी"

मकसद: “वो चीज़ सिर्फ चोरी नहीं हुई… उसे ढूंढने के लिए चुराया गया है।”


विक्रम ने आँखें तरेरीं—“मतलब?”


कबीर ने एक कागज़ निकाला—एक पुरानी, सड़ी हुई डायरी का पन्ना।


उस पर लिखा था—


"संरक्षित वस्तु - कोड: AUM-9

स्थान: सावंत भवन - ब्लॉक Z

संलग्न: ब्रह्म सर्कल"


विक्रम की आँखों में चमक आ गई।


AUM-9… यही वो 'चीज़' थी।


और 'ब्रह्म सर्कल'… एक गुप्त संगठन, जो भारत की प्राचीन संपदाओं की रखवाली करता था। किवदंती थी कि ये संगठन हजारों साल पुराना है… और इसकी सदस्यता सिर्फ चुने हुए लोगों को दी जाती थी।


रामकिशन, आयशा और अब कबीर—तीनों का इससे कोई न कोई कनेक्शन था।



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आयशा बँगले की खिड़की से विक्रम और कबीर की बातचीत सुन रही थी… और धीरे से अपने फोन पर एक मैसेज टाइप कर रही थी—


“He knows about AUM-9. We need to activate Plan K.”



....


विक्रम के हाथ में डायरी का पन्ना था। उस पर लिखे कोड AUM-9 और शब्द ब्लॉक Z ने उसे सावंत ग्रुप की पुरानी फैक्ट्री तक पहुँचा दिया—एक सुनसान जगह, जिसे 15 साल पहले बंद कर दिया गया था।


चारों तरफ सन्नाटा। धूल जमी ज़मीन पर सिर्फ एक ताज़ा ट्रैक—कार के टायरों के निशान।


विक्रम मुस्कुराया, “कोई मुझसे पहले पहुँच चुका है…”


वो अंदर घुसा। पुरानी मशीनें, लोहे की सीढ़ियाँ, टूटे शीशे। लेकिन एक कोना साफ था… जैसे किसी ने हाल ही में इस्तेमाल किया हो।


दीवार में एक चौंकाने वाली चीज़ मिली—एक पत्थर का गोल चक्र, जिस पर अंकित था ‘ॐ’ का प्रतीक।

वो "ब्रह्म सर्कल" का चिन्ह था।


और नीचे खुदा था:


“अग्नि, जल, वायु – तीनों जब एक हो, द्वार खुलेगा।”


विक्रम ने आसपास देखा—तीन लीवर थे, जिनके पास चिन्ह बने थे: आग, पानी, हवा।


विक्रम को याद आया—ये एक टेस्ट है… एक गार्डियन लॉजिक।


उसने सही क्रम में लीवर खींचे—पहले हवा, फिर पानी, और अंत में अग्नि।


गूंजता हुआ शोर… और ज़मीन हिल गई।


एक सीढ़ी नीचे खुली।


विक्रम साँस रोक कर उतरा… और सामने था एक गुप्त बंकर—जहाँ बक्सों में बंद थे प्राचीन ग्रंथ, विचित्र कलाकृतियाँ, और बीच में एक कांच की केसिंग—जिसमें रखा था एक नीला क्रिस्टल जैसा पत्थर।


विक्रम के पास आते ही, केसिंग पर लाइट जल उठी… और पीछे से एक आवाज़ आई—


"AUM-9 को हाथ मत लगाना, वरना तुम वही देखोगे जो इंसानों को कभी नहीं देखना चाहिए…"


विक्रम ने मुड़कर देखा—आयशा, हाथ में गन, और चेहरे पर वो सन्नाटा जो सिर्फ उन्हें आता है, जो सच जानते हैं।



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आयशा की आंखों में डर था, लेकिन उसका हाथ कांप नहीं रहा था।


“विक्रम, इस क्रिस्टल को छूना भी खतरे से खाली नहीं। ये सिर्फ एक चीज़ नहीं… ये ज्ञान का स्रोत है—जो सदियों से छिपा हुआ है।”


विक्रम ने शांत लहजे में कहा,

"सच से डर लगता है तो झूठ के पीछे क्यों भाग रही हो?"


आयशा चुप रही। बंकर की दीवारों पर बने चित्रों की ओर इशारा किया।


चित्रों में दिखाए गए थे—प्राचीन ऋषि, तंत्र-मंत्र, और एक नीली रोशनी जो दिमाग और आत्मा को एक साथ जोड़ने की शक्ति रखती थी।


“AUM-9 एक साधारण क्रिस्टल नहीं, ये एक प्राचीन मानसिक ऊर्जा एम्प्लीफायर है,” आयशा बोली।

“जिसके पास ये हो, वो दूसरों के विचार पढ़ सकता है, यादें देख सकता है, और उन्हें बदल भी सकता है।”


विक्रम अवाक रह गया।


“रामकिशन इस क्रिस्टल को बेचना चाहता था… वो नहीं जानता था कि ये किस हद तक खतरनाक है। ब्रह्म सर्कल ने उसे सिर्फ सुरक्षा के लिए सौंपा था।”


तभी बंकर के दरवाज़े ज़ोर से धड़धड़ाए।


कबीर आ गया था। पर वो अकेला नहीं था।


पीछे खड़े थे कुछ नकाबपोश लोग… "द वॉयस" के एजेंट्स—एक अंडरग्राउंड नेटवर्क जो दुनियाभर में गुप्त तकनीकें और मानसिक हथियार खरीदता-बेचता है।


विक्रम फौरन AUM-9 की केसिंग की ओर भागा, लेकिन आयशा ने गन उसकी ओर मोड़ दी।


"तुम ये नहीं समझते विक्रम… AUM-9 को दुनिया के सामने लाना मतलब हर इंसान की सोच को खतरे में डालना है!"


बंकर में अब तीन ताकतें थीं:


विक्रम – जो सच जानना चाहता था।


आयशा – जो उसे छुपाना चाहती थी।


द वॉयस – जो उसे बेचना चाहता था।



और अब शुरू होती है असली लड़ाई… सोच और शक्ति की।



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बंकर में माहौल ठंडा था, लेकिन हालात तप चुके थे।


विक्रम, आयशा और कबीर—तीनों के बीच खिंचाव अब तलवार की धार जितना नाज़ुक था।


द वॉयस के नकाबपोश एजेंट्स बंकर में घुस चुके थे। उनके पास हथियार थे, लेकिन विक्रम के पास… सोच थी।


“विक्रम,” कबीर चीखा, “हमें AUM-9 उन्हें सौंपना होगा… वरना यहाँ से कोई ज़िंदा नहीं जाएगा।”


“नहीं,” आयशा ने गुस्से से कहा, “अगर उन्होंने AUM-9 को छू भी लिया… दुनिया की हर सरकार, हर सिस्टम मिट जाएगा।”


विक्रम ने दोनों की तरफ देखा। और फिर धीरे से AUM-9 की केसिंग की ओर बढ़ा।


“मैं इसका इस्तेमाल करूंगा… लेकिन अपने तरीके से।”


उसने कांच तोड़ा, और नीले क्रिस्टल को हाथ में उठाया।


अगले ही पल… सब थम गया।


समय रुक गया। आवाजें गायब।

आंखों के सामने एक के बाद एक तस्वीरें तैरने लगीं—रामकिशन की डील, आयशा का दर्दनाक अतीत, कबीर का विश्वासघात, द वॉयस की असलियत।


AUM-9 ने विक्रम को हर एक का सच दिखा दिया था।


जब उसे होश आया, उसने देखा कि आयशा रो रही थी।


“अब तुम जान चुके हो… अब क्या करोगे?”


विक्रम ने क्रिस्टल को जमीन पर रखा और गन उठाई।


“मैं इसे किसी को नहीं दूंगा। न तुम्हें, न कबीर को, न इन मुखौटों को।"


और एक बटन दबाते ही बंकर में एक सेल्फ-डिस्ट्रक्ट प्रोटोकॉल एक्टिवेट हो गया—आखिरी सुरक्षा ब्रह्म सर्कल की।


“भागो!” उसने चिल्लाया।



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बंकर से बाहर आते ही सब कुछ ढह गया। धूल के गुबार में तीन परछाइयाँ थीं—विक्रम, आयशा और कबीर।


विक्रम की जेब में AUM-9 का एक टुकड़ा बचा था—कई टुकड़ों में टूटा, लेकिन अब शक्ति नहीं, चेतावनी बन चुका था।


वो बोला—


“कुछ सच, दुनिया के लिए नहीं होते। उन्हें बस सही समय का इंतज़ार करना पड़ता है।”


आयशा ने उसकी ओर देखा और मुस्कुरा दी।

“अब तुम समझ गए हो… क्यों मैं तुम्हें रोक रही थी।”



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कहानी समाप्त… लेकिन रहस्य नहीं।


क्योंकि AUM-9 का एक टुकड़ा अब विक्रम के पास है… और शायद, एक दिन फिर से उसका इस्तेमाल होगा।



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